Manipur Violence: 11 अगस्त 2023 को लोकसभा की पटल से पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मणिपुर में जल्द ही शांति का सूरज जरूर उगेगा। उनके उस बयान पर उस समय सदन में ज्यादातर सांसनो मेज थपथपा कर अपना समर्थन दिया था। पीएम मोदी की आवाज में भी एक ऐसा विश्वास था कि सभी मान गए थे कि मणिपुर में हालात सुधर जाएंगे। अब उस बयान को दो साल पूरे होने को हैं और मणिपुर फिर जल रहा है, मणिपुर फिर कर्फ्यू का दंश झेल रहा है, कई जगहों पर इंटरनेट सस्सपेंड हो चुका है।
मणिपुर में इस बार हिंसा कैसे शुरू हुई?
इस बार मणिपुर में मैतेई संगठन अरम्बाई टेंगोल के नेता कानन सिंह को गिरफ्तार किया गया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने 2023 में मणिपुर में हिंसा को भड़काने का काम किया है। अब सीबीआई का दावा है कि उनके पास सारे सबूत मौजूद हैं और उसी आधार पर वो कार्रवाई हुई। लेकिन क्योंकि एक बड़ा नेता अरेस्ट हुआ, ऐसे में उसके समर्थकों ने सड़क पर उतर उपद्रव मचाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते फिर मणिपुर हिंसा की भयंकर चपेट में आ गया।
इंफाल के एक नहीं कई ऐसे इलाके सामने आए जहां पर गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया, जगह-जगह टायर जलाए गए, पुराने फर्नीचर तक को नहीं बख्शा गया। यहां तक बात नहीं बनी तो प्रदर्शनकारियों ने खुद को भी जलाने की कोशिश की, अपने ऊपर ही पेट्रोल तक छिड़क लिया। हालात जब ज्यादा बेकाबू होने लगे तब 7 जून को रात 11.45 बजे पांच दिनों के लिए पांच जिलों में इंटरनेट सस्पेंड कर दिया गया।
मणिपुर में चल रहा राष्ट्रपति शासन
अगले पांच दिनों के लिए इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल, काकचिंग और बिष्णुपुर में इंटरनेट बंद रहेगा। वहीं क्योंकि इंफाल ईस्ट और बिष्णुपुर में हालात ज्यादा विस्फोटक हैं, ऐसे में वहां पर कर्फ्यू लगा दिया गया है। हालात ऐसे बने हुए हैं कि जगह-जगह पुलिस का प्रदर्शनकारियों से का साथ टकराव हो रहा है। दोनों तरफ से ही बल प्रयोग किया जा रहा है और तनाव बढ़ता जा रहा है। अब एक तरफ हिंसा का दौर जारी है तो वहीं दूसरी तरफ पूर्वोत्तर का यह राज्य राजनीतिक अस्थिरता के भी दौर से गुजर रहा है। 13 फरवरी से ही यहां पर राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है, विधानसभा को निलंबित कर रखा है।
केंद्र पर हमलावर हुई कांग्रेस
विधानसभा का निलंबित होना ही बताने के लिए काफी है कि पिछली सरकार हिंसा रोकने के लिए कठोर कदम नहीं उठा पाई। चिंता की बात यह है कि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भी लगातार छुटपुट हिंसा की खबरें आती रहीं और अब तो फिर स्थिति विस्फोटक बन चुकी है। इस विस्फोटक स्थिति को लेकर ही कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर है। पीएम मोदी को भी निशाने पर लिया जा रहा है और सरकार की पूर्वोत्तर नीति को भी कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।
कांग्रेस के सरकार से तीखे सवाल
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी रविवार को X पर पूछा- केंद्र का शासन होने के बावजूद मणिपुर में शांति बहाली क्यों नहीं हो पा रही है? प्रियंका ने लिखा है, “प्रधानमंत्री ने मणिपुर को उसके हाल पर क्यों छोड़ दिया है, वह आज तक मणिपुर नहीं गए और न राज्य के किसी प्रतिनिधि से मिले, न कभी शांति की अपील की और न ही कोई ठोस प्रयास किए।”
पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा है कि मणिपुर के लोगों का दुख खत्म नहीं हो रहा है। राज्य में फरवरी, 2022 में हुए चुनाव में एनडीए को स्पष्ट जनादेश मिला था लेकिन 3 मई, 2023 की रात के बाद से मणिपुर को जलने के लिए छोड़ दिया गया है।
मणिपुर का इतिहास, हिंसा की क्या जड़?
अब इस बार की हिंसा को तभी ठीक तरह से समझा जा सकता है, जब मणिपुर के बैकग्राउंड को भी समझ लिया जाए। असल में मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं- इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।
पिछली बार मणिपुर में इस स्तर की हिंसा साल 1992 में देखने को मिली थी जब NSCN (IM) और कुकी समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था। उस हिंसा में कुकी समुदाय के करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी।
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