December 15, 2025

रोहिंग्या शरणार्थी संकट पर अन्तरराष्ट्रीय इच्छाशक्ति की परीक्षा

0
1759169752_image770x420cropped.jpg


संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक उच्च-स्तरीय सप्ताह का हिस्सा यह सम्मेलन बेहद अहम है. घटते सहायता बजट और म्याँमार में तेज़ होते संघर्ष ने दुनिया की सबसे उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों में से एक को, गहरी अनिश्चितता में धकेल दिया है.

बैठक में शामिल प्रतिनिधि, रोहिंग्या मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों व सुरक्षा पर विचार करेंगे, और ऐसे राजनैतिक, सामाजिक व सुरक्षा उपाय तलाश करेंगे, जिनसे रोहिंग्या व अन्य शरणार्थियों की सुरक्षित, स्वैच्छिक और गरिमापूर्ण वापसी सुनिश्चित हो सके.

पलायन अभी थमा नहीं है. आहत और आतंकित रोहिंग्याओं का दक्षिणी बांग्लादेश पहुँचना जारी है, जिससे पहले से गहरी मानवीय पीड़ा और बढ़ रही है.

बांग्लादेश के कॉक्सेज़ बाज़ार शरणार्थी शिविर में, लाखों रोहिंग्या लोग रहते हैं और वहाँ खाद्य वस्तुओं व अन्य सुविधाओं की भारी कमी है.

अन्तहीन अनिश्चितता

म्याँमार में रोहिंग्या मुसलमान लम्बे समय से नागरिकता और बुनियादी अधिकारों से वंचित रहे. उन्हें हिंसा की लहरों से बचने के लिए बार-बार पलायन करना पड़ा. 

2017 में हिंसा इतनी बढ़ी कि संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन मानवाधिकार प्रमुख ज़ायद रा’अद अल-हुसैन ने इसे “जातीय सफ़ाए का मानक उदाहरण” बताया था.

रोहिंग्या लोगों को बांग्लादेश पहुँचने पर कॉक्सेस बाज़ार में अस्थाई आश्रय मिला – जो अब दुनिया की सबसे बड़ी शरणार्थी बस्ती बन चुकी है.

लेकिन इस अस्थाई इन्तज़ाम ने जल्दी ही स्थाई संकट का रूप ले लिया. म्याँमार में सैन्य दमन और विद्रोह के कारण सुरक्षित वापसी का रास्ता लगभग बन्द है.

वहीं बांग्लादेश में शिक्षा और रोज़गार के अवसर सीमित हैं. सुरक्षा-सम्बन्धी घटनाएँ, तस्करी और स्थानीय लोगों के साथ तनाव उनकी मुश्किलों को और बढ़ा रहे हैं.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में रोहिंज्या शरणार्थियों से मुलाक़ात की.

ढहने की चेतावनी

शुक्रवार को महासभा की वार्षिक बहस में बांग्लादेश की अन्तरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने कड़ी चेतावनी दी.

उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र का विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) बड़े वित्तीय संकट की ओर इशारा कर चुका है. अगर तुरन्त आर्थिक मदद नहीं मिली, तो मासिक राशन घटाकर प्रति व्यक्ति केवल 6 डॉलर करना पड़ सकता है – जिससे रोहिंग्या लोग भूख व कुपोषण की और गहरी स्थिति में धकेले जाएँगे, जिससे कई लोग मजबूरी में ख़तरनाक क़दम उठाने के लिए विवश हो सकते हैं.”

मोहम्मद यूनुस ने दाताओं से “अधिक योगदान” की अपील की. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि इस पूरे संकट की जड़ें म्याँमार के भीतर हैं.

उन्होंने कहा, “राख़ीन प्रान्त में सांस्कृतिक पहचान की राजनीति के कारण, रोहिंग्या लोगों के अधिकारों का हनन और उत्पीड़न जारी है. रोहिंग्या को हाशिए पर धकेलने का सिलसिला अब रुकना चाहिए.”

“ज़रूरी है कि सभी पक्षों को साथ लेकर एक राजनैतिक समाधान खोज़ा जाए, ताकि रोहिंग्या भी बराबरी के अधिकारों के साथ राख़ीन समाज का हिस्सा बन सकें.”

कई नेताओं ने भी यही चिन्ता दोहराई कि रोहिंग्या समस्या, उन बड़े, अनसुलझे संघर्षों का प्रतीक बन गई है, जो राजनैतिक खींचतान की वजह से आज भी अनसुलझे हैं.

कुटुपलाँग महाशिविर में 23 मार्च को भीषण आग लगने के बाद प्रभावित इलाक़े में एक बच्चा.

“हम हार नहीं मानेंगे”

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतेरेश, इस वर्ष की शुरुआत में कॉक्सेस बाज़ार गए थे. उन्होंने कहा कि कॉक्सेस बाज़ार के शिविर “दुनिया की सामूहिक विफलता” की कड़ी याद दिलाते हैं.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि असली व स्थाई समाधान यही है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को म्याँमार में सुरक्षा, स्वेच्छा व सम्मान के साथ वापस जाने का मौक़ा मिले. उन्होंने सभी पक्षों से संयम बरतने, नागरिकों की रक्षा करने और लोकतंत्र की जड़ें जमाने की परिस्थितियाँ बनाने की अपील की.

लेकिन अभी म्याँमार की स्थिति ऐसी नहीं है कि फिलहाल वापसी सम्भव हो सके.

यूएन प्रमुख ने अपील की कि जब तक संघर्ष और व्यवस्थित उत्पीड़न ख़त्म नहीं होते, बांग्लादेश में ज़रूरतमन्द लोगों के लिए अन्तरराष्ट्रीय समर्थन जारी रखा जाए.

पूर्वी म्याँमार के कायाह प्रान्त में डिमॉहसो नगर में घरेलू विस्थापितों के लिए स्थापित एक शिविर का दृश्य.

© UNOCHA/Siegfried Modola

म्याँमार का गहराता राजनैतिक संकट

म्याँमार, 1 फ़रवरी 2021 के सैन्य तख़्तापलट के बाद, लगातार हिंसा और अस्थिरता से जूझ रहा है.

हज़ारों लोग मारे गए, लाखों लोग विस्थापित हुए, और आधी से ज़्यादा आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है. बाढ़ और भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने पहले से कमज़ोर बुनियादी ढाँचे पर और बोझ डाल दिया है.

इसका सबसे भारी असर रोहिंग्या, काचिन, शान और चिन जैसे अल्पसंख्यकों पर पड़ा है.

सेना पर सुनियोजित तरीक़े से मानवाधिकारों के उल्लंघन करने के आरोप हैं. इनमें  मनमाने तरीक़े से हिरासत में लेना, यातना व ग़ैर-न्यायिक हत्याएँ शामिल हैं – जो सम्भवतः मानवता के ख़िलाफ़ अपराध की श्रेणी में आते हैं. इसके अलावा स्कूलों, अस्पतालों और धार्मिक स्थलों पर भी अंधाधुंध हमले किए गए हैं.

मैंडाले में एक शिक्षक खंडहरों के बीच ...वहीं, जहाँ कभी वह अंग्रेज़ी और विज्ञान पढ़ाया करते थे. अब वह कक्षा मार्च में आए भूकम्प की तबाही में पूरी तरह तबाह हो चुकी है.

उम्मीद, साहस और धैर्य

मानावधिकारों पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्र्यूज़ ने लोगों के हौसले और उनके सामने मौजूद ख़तरों की ओर ध्यान दिलाया.

उन्होंने कहा, “मैं म्याँमार के लोगों का अदम्य साहस देखकर विस्मित हूँ. यही लोग मुझे यह विश्वास और उम्मीद देते हैं कि यह दुःस्वप्न एक दिन ख़त्म होगा.. यही मेरी आशा का सबसे बड़ा आधार है.”

इस बीच, जब विश्व नेता न्यूयॉर्क में इकट्ठा हो रहे हैं, कार्यकर्ताओं का कहना है कि असली चुनौती केवल नई धनराशि जुटाने की नहीं, बल्कि इस संकट को हल करने की राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखाने की है, जो अब वैश्विक उदासीनता और निराशा का प्रतीक बन चुका है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *