शिमला, 6 जून (हप्र)
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बेवजह मुकद्दमे बाजी में उलझाने के लिए करसोग वन मण्डल अधिकारी को एक लाख रुपए का हर्जाना देना होगा। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने प्रधान मुख्य अरण्यपाल और करसोग वन मण्डल अधिकारी की अपील का निपटारा करते हुए यह आदेश जारी किए। एकल पीठ ने उक्त दोनों अधिकारियों पर संयुक्त रूप से यह कॉस्ट लगाई थी। एकल पीठ के निर्णय को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी। खंडपीठ ने प्रधान मुख्य अरण्यपाल को जुर्माने से राहत देते हुए वन मण्डल अधिकारी करसोग पर लगाई कॉस्ट को सही ठहराया। न्यायाधीश बी सी नेगी की एकल पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए वन विभाग की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की थी।
कोर्ट ने कहा था कि अदालतों द्वारा व्यवस्थित कानून को वन विभाग ने अव्यवस्थित करने की कोशिश करते हुए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को उसके सेवा लाभों से 14 वर्षों तक वंचित रखा। इतना ही नहीं वन विभाग के आला अधिकारियों ने कानूनी जानकारी स्पष्ट होते हुए जानबूझ कर प्रार्थी से भेदभाव किया। खंडपीठ ने कहा डीएफओ करसोग ने जानबूझ कर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के प्रतिवेदन को गलत तथ्यों के आधार पर खारिज किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा इस अधिकारी ने रिट याचिकाकर्ता को उसके आवश्यक बकाया से वंचित करने के उद्देश्य से किया।
ये था मामला
मामले के अनुसार प्रार्थी ने 240 दिन प्रतिवर्ष की दिहाड़ीदार सेवाओं के साथ 8 साल 1 जनवरी 2002 को पूरे कर लिए थे। इस कारण प्रार्थी 1 जनवरी 2002 से वर्क चार्ज स्टेट्स के लिए पात्र हो गया। वन विभाग ने उसे यह लाभ न देते हुए उससे 14 साल लगातार दिहाड़ीदार सेवाएं लेते हुए वर्ष 1 अप्रैल 2008 को नियमित किया। विभाग ने उसे 8 वर्ष का दिहाड़ीदार कार्यकाल पूरा करने के बाद वर्क चार्ज स्टेट्स देने से इंकार करते हुए कहा कि वन विभाग वर्क चार्ज संस्थान नहीं है।